द्वी मिठ्ठा बोल सुणी ,गीतुं की मेस लगाण लगी जांद यो कौथिगेर मन बस त्वे ,अपणु समझण लगी जांद ।। भीड़ मा त झट माणी जांदू यो निर्भगी घड़ेक यकुलांस मा सुद्दी डांडयूँ,धवड़ी लगाण लगी जांद ।। यो... विज्या मा त त्यारा ध्वारा बि नि आंदू विचारु अर सुपन्या मा त्वे दगडी,अफी माया लगाण लगी जांद ।। यो... जै बगत लुकी कै देखदु ,तेरी स्या जोन सी मुखड़ी उज्यला मा बी निर्भगी ,सँगता लमडण लगी जांद ।। यो... माया कु मुंडारो काख धैरी की बिसरि जांदू कु सगोर्या अर चकोरा की चारयूं घौणा बौण मा , डबखण लगी जांद।। यो... ज्युन्दू रैणा की अब टक बांधयाली वेल,बोनु छौ "राज" त्यारा बगैर त लठ्याली ,वो चुला की आग जन भभराण लगी जांद।। यो... ©Saurabh Raj Sauri "यो कौथिगेर मन"