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मुझे पता है यतार्थ ज़िंदगी के सारे वायदे जो किये हम

मुझे पता है यतार्थ
ज़िंदगी के सारे वायदे
जो किये हमने बेझिझक।
उस रात की वीरांगनायें बुलाती है
हमे रुक्सत करो उजालों
क डर से भागने लगती है।
वो कालिख सी घिसी पीटी दीवार 
जिसपर उकेर दिया नज्म
वो गीत न गुनगुना पाया
अपनी जवानी में बेशक।
अंत नहीं हुआ ज़िंदा है आज भी
लाबों के दुश्मन पर जो कर गया
क्यों कर गया मैं?
क्यों न कर पाया खुद को अमर
सफर करते करते दोनों ही होकर गुलिस्ताँ
हो गए बस रह गयी कसक। #कविताओं
मुझे पता है यतार्थ
ज़िंदगी के सारे वायदे
जो किये हमने बेझिझक।
उस रात की वीरांगनायें बुलाती है
हमे रुक्सत करो उजालों
क डर से भागने लगती है।
वो कालिख सी घिसी पीटी दीवार 
जिसपर उकेर दिया नज्म
वो गीत न गुनगुना पाया
अपनी जवानी में बेशक।
अंत नहीं हुआ ज़िंदा है आज भी
लाबों के दुश्मन पर जो कर गया
क्यों कर गया मैं?
क्यों न कर पाया खुद को अमर
सफर करते करते दोनों ही होकर गुलिस्ताँ
हो गए बस रह गयी कसक। #कविताओं