मुझे पता है यतार्थ ज़िंदगी के सारे वायदे जो किये हमने बेझिझक। उस रात की वीरांगनायें बुलाती है हमे रुक्सत करो उजालों क डर से भागने लगती है। वो कालिख सी घिसी पीटी दीवार जिसपर उकेर दिया नज्म वो गीत न गुनगुना पाया अपनी जवानी में बेशक। अंत नहीं हुआ ज़िंदा है आज भी लाबों के दुश्मन पर जो कर गया क्यों कर गया मैं? क्यों न कर पाया खुद को अमर सफर करते करते दोनों ही होकर गुलिस्ताँ हो गए बस रह गयी कसक। #कविताओं