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हन्ता कौन? ****** साख से टूटे हुए,पत्तों से पूछो क

हन्ता कौन?
******
साख से टूटे हुए,पत्तों से पूछो कौन है?
खो गया पहचान उसकी,एक सिसकता मौन है।

वो जो पत्ता फिर कभी,जुड़ता नही है डाल से
दर्द वो, अब कब है कहता,हर ब्यथा अब गौण है।

था कभी वो भी महकता,डाल के उन फूलों से
जिसने गिरते देखा उसको,बहती हवा के भूल से।

पेड़ दुनियां, साख घर था,पत्ते थे भाई जंहा
जब वो टूटा, साख छोड़ा,साथ किसने दी वंहा।

आज चुप-चुप,थम रहे सांसो संग भू पे यूँ पड़ा
देखता परिहास,अपने साथियों का,क्यों गिरा?

रक्त उसका जम रहा,हरियाली अब खोने लगी
आह घुटा,सत्य का आभाष अब होने लगा।

है जनम एक जोड़ तो,मृत्यु पृथक का भान है
संग,सब है तभी तक,जब तक नसों में जान है।

पूछता है रूह से,बतला वो हन्ता कौन है?
रहता है वो इर्द-गिर्द,फिर भी वो कैसे गौण है?

साख से टूटे हुए,पत्तों से पूछो कौन है?
खो गया पहचान उसकी,एक सिसकता मौन है।

दिलीप कुमार खाँ"""अनपढ़"" #poem✍🧡🧡💛 #Hindi #geet #Love #Mre alfaz
हन्ता कौन?
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साख से टूटे हुए,पत्तों से पूछो कौन है?
खो गया पहचान उसकी,एक सिसकता मौन है।

वो जो पत्ता फिर कभी,जुड़ता नही है डाल से
दर्द वो, अब कब है कहता,हर ब्यथा अब गौण है।

था कभी वो भी महकता,डाल के उन फूलों से
जिसने गिरते देखा उसको,बहती हवा के भूल से।

पेड़ दुनियां, साख घर था,पत्ते थे भाई जंहा
जब वो टूटा, साख छोड़ा,साथ किसने दी वंहा।

आज चुप-चुप,थम रहे सांसो संग भू पे यूँ पड़ा
देखता परिहास,अपने साथियों का,क्यों गिरा?

रक्त उसका जम रहा,हरियाली अब खोने लगी
आह घुटा,सत्य का आभाष अब होने लगा।

है जनम एक जोड़ तो,मृत्यु पृथक का भान है
संग,सब है तभी तक,जब तक नसों में जान है।

पूछता है रूह से,बतला वो हन्ता कौन है?
रहता है वो इर्द-गिर्द,फिर भी वो कैसे गौण है?

साख से टूटे हुए,पत्तों से पूछो कौन है?
खो गया पहचान उसकी,एक सिसकता मौन है।

दिलीप कुमार खाँ"""अनपढ़"" #poem✍🧡🧡💛 #Hindi #geet #Love #Mre alfaz