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बदलाव कहाँ है? Read Article in Caption. अरे छोडिए

बदलाव कहाँ है?

Read Article in Caption. अरे छोडिए यह दिखावा की आपको फर्क पडता है,यह उबाल मैंने दिल्ली में भी देखा था,आपकी कोशिश को छोटा नहीं कहना चाहता,लेकिन कटू सत्य यह है कि 2012 से अबतक कितने बलात्कार हुए यह जानने के लिए आपको कैल्कुलेटर निकालना पडेगा । 1 दिन मे करीब 91 महिलाओं का बलात्कार होता है इस देश मे,8 साल हो गए दिल्ली और हाथरस की घटना के बीच, क्यों उलझ गए हिसाब मे? । दो बिल्कुल अलग शहर,एक दिल्ली जिसे आधुनिकता ने पाला,एक हाथरस जिसे देसीपने ने पाला लेकिन घटना एक जैसी,लेकिन सोच एक जैसी । तो फर्क कहाँ है?
क्या इमारतों के कद,कम या ज्यादा होने से सोच बदल सकती है? नहीं बिल्कुल नहीं !!
कल दिल्ली भी मुजरिम था,आज हाथरस भी मुजरिम है ।
लेकिन आप लोगो से एक बात कहना चाहुंगा,जो मोमबत्ती जलाने पहुंच जाते है किसी जुलूस मे,जो जात ढूंढ कर विरोध करते है,जो सवाल प्रशासन से कर रहे है,जो भारत मे बलात्कारियों के लिए शरिया कानून लाने की बात कर है, मुझे समझ नहीं आता की आपकी सारी दलिलों मे बलात्कार होने के बाद की ही स्थिति क्यों है?
आपके पास बलात्कार रोकने की योजनाएं नहीं है,बस सजा देने की योजनाएं है ।
माफ करिए मै उम्मीद भी उस समाज से लगा रहा हूँ जिसने पहले ही औरत को भोग की वस्तु समझ लिया है,उस समाज के गानों मे औरत नाचती है तो सिर्फ एक "आइटम गर्ल" है,उस समाज की नजर मे गाली देना औरत को जोडकर एक फैशन है,वेब सिरीज़ की भाषा मे कहूँ तो "कूल" है , उस समाज से मै क्या कहूँ जिसने 2012 दिल्ली मे लड झगड कर इंसाफ तो छीन लिया लेकिन बदलाव माँगना भूल गया । 
अगर समाज ने इंसाफ के साथ बदलाव भी माँगा होता दिल्ली मे तो शायद हाथरस ना होता,ना ही हर दिन 91 औसतन बलात्कार होते ।
आप सवाल पुछिए की एसी दरंदिगी की भयावह सजा क्या होनी चाहिए,आप उन दोषी पुलिसवालों पे भी सख्त कार्यवाही की मांग किजिए,आप कानून से भी सवाल किजिए,आप उस भगवादारी को भी चुनावी वादा याद दिलाइए ।
बदलाव कहाँ है?

Read Article in Caption. अरे छोडिए यह दिखावा की आपको फर्क पडता है,यह उबाल मैंने दिल्ली में भी देखा था,आपकी कोशिश को छोटा नहीं कहना चाहता,लेकिन कटू सत्य यह है कि 2012 से अबतक कितने बलात्कार हुए यह जानने के लिए आपको कैल्कुलेटर निकालना पडेगा । 1 दिन मे करीब 91 महिलाओं का बलात्कार होता है इस देश मे,8 साल हो गए दिल्ली और हाथरस की घटना के बीच, क्यों उलझ गए हिसाब मे? । दो बिल्कुल अलग शहर,एक दिल्ली जिसे आधुनिकता ने पाला,एक हाथरस जिसे देसीपने ने पाला लेकिन घटना एक जैसी,लेकिन सोच एक जैसी । तो फर्क कहाँ है?
क्या इमारतों के कद,कम या ज्यादा होने से सोच बदल सकती है? नहीं बिल्कुल नहीं !!
कल दिल्ली भी मुजरिम था,आज हाथरस भी मुजरिम है ।
लेकिन आप लोगो से एक बात कहना चाहुंगा,जो मोमबत्ती जलाने पहुंच जाते है किसी जुलूस मे,जो जात ढूंढ कर विरोध करते है,जो सवाल प्रशासन से कर रहे है,जो भारत मे बलात्कारियों के लिए शरिया कानून लाने की बात कर है, मुझे समझ नहीं आता की आपकी सारी दलिलों मे बलात्कार होने के बाद की ही स्थिति क्यों है?
आपके पास बलात्कार रोकने की योजनाएं नहीं है,बस सजा देने की योजनाएं है ।
माफ करिए मै उम्मीद भी उस समाज से लगा रहा हूँ जिसने पहले ही औरत को भोग की वस्तु समझ लिया है,उस समाज के गानों मे औरत नाचती है तो सिर्फ एक "आइटम गर्ल" है,उस समाज की नजर मे गाली देना औरत को जोडकर एक फैशन है,वेब सिरीज़ की भाषा मे कहूँ तो "कूल" है , उस समाज से मै क्या कहूँ जिसने 2012 दिल्ली मे लड झगड कर इंसाफ तो छीन लिया लेकिन बदलाव माँगना भूल गया । 
अगर समाज ने इंसाफ के साथ बदलाव भी माँगा होता दिल्ली मे तो शायद हाथरस ना होता,ना ही हर दिन 91 औसतन बलात्कार होते ।
आप सवाल पुछिए की एसी दरंदिगी की भयावह सजा क्या होनी चाहिए,आप उन दोषी पुलिसवालों पे भी सख्त कार्यवाही की मांग किजिए,आप कानून से भी सवाल किजिए,आप उस भगवादारी को भी चुनावी वादा याद दिलाइए ।
namitraturi9359

Namit Raturi

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