हर तरफ यूं पसरा है धुआं , जैसे वक्त के मुट्ठी से बिखरा है धुआं सीने में जमी सर्द आग है , सांसों में जैसे ठहरा है धुआं करवट लूं तो छिलता है बदन , दर्द का बादल गहरा है धुआं उजालों की अब मुलाकात नहीं होती , मेरे हर चराग़ का पहरा है धुआं जी करता है नजर भर देखूं उसे , आंखों में मगर चुभता है धुआं मैं गुलिस्तान का परिंदा था मगर , चमन में मेरे अब रहता है धुआं ये चांद पे छाई बदरी कारी है , या रात का नया चेहरा है धुआं ~ सुगंध #sugandh_ankahi #midnightpoems #shayri #yqdidi #pain #raat