#OpenPoetry कभी पूंछना आसमान से कैसी होती है वो रात उसकी जब चाँद नहीं होता वो वीरान रुआसी संवेदना उसकी वो सन्नाटे से भरे चीत्कार उसके मानो किसी युद्ध के बाद का चित्र पूरित करता एक ही सही तुम्हारे घरौंदे में चराग तो जलता है नींद में ही सही लौ आँखें तो मलता है तुम्हारे उन्माद में भी उन्माद नहीं होता पूंछना आसमान से क्या होता है जब चाँद नहीं होता वो रात रास रस अलौकिकता उसकी वो पूर्ण प्राप्ति को निराला सी हुंकार उसकी मानो बेशब्द हो आँसुओं को आकाशगंगा से गिड़गिड़ाता तुम्हारे आशियाने में आँसू छलकता तो है बूँद में ही सही कराह झलकता तो है तुम्हारा साद बर्बाद होके भी बर्बाद नहीं होता पूंछना आसमान से क्या होता है जब चाँद नहीं होता #OpenPoetry