मैं कैसाहूँ? जब तक जिद्दी हूँ, जिंदा हूँ, खुशियों का पुलिंदा हूँ। विस्तृत गगन में उड़ता हुआ, चहकता एक परिंदा हूँ। जिद गई तो जिंदगी भी गई, शख्स बहुत चुनिंदा हूँ। अपनी शख्सियत से वाकिफ़ हूँ, नहीं तनिक शर्मिंदा हूँ। मौत से गले मिलने के पहले, जीवन का कारिंदा हूँ। मौत की इस माया नगरी में, नवजीवन के मानिंदा हूँ। सच्चे प्रेमियों का दोस्त हूँ प्रेमनगर का बासिंदा हूँ। जान-बूझ कर जो मुझे सताए, उसके लिए दरिंदा हूँ। बहुत कुछ और बताना है मुझको अभी थोड़ा-सा उनिंदा हूँ।। #howami