क्यूं भरा सा हूं मै हर पहलू से , फिर भी प्यास है क्यूं जो तेरे आने से मिला था , जाने से नहीं गया क्यूं मेरे हर्फ हर्फ में बसा था तू , बसा है क्यूं तब चाहते थे मुझे जिस रिश्ते से , आज उसी से हाया है क्यूं मेरी शामें रंगीन की , जब रात घनी काली थी क्यूं पड़े वो हाथ मेरे हाथों में जब , रेत से फिसलने थे क्यूं सैकड़ों रातों को बस एक ही दिया जलाऐ रखा क्यूं जवाब नहीं मिलता अब मेरे जिद्दी सवालों का क्यू हर बात के बाद ये क्यों आ जाता है अब क्यूं.. ना जाने क्यूं..