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डूबते शहर में रंजीशें बहुत है , मुल्क की सरहद पार

डूबते शहर में रंजीशें बहुत है ,
मुल्क की सरहद पार कर चले..!
हर लिबास खूनी रंगों का खेल ,
यहां कोई ना जो अपना सा लगे..!

कुदरत भी बेपरवाह हो गई ,
मूंदी आंखों से जो उफ न करे..!
गलियारों में हर मां बिलखती ,
पूतों की लाशें पाने को लड़े...!!

किस बात की ये छींटाकशी ,
रूप रंग जब एक ही लगे...!
कौन सी लकीर खींची गई ,
जिसे लांघें कोई ज़िंदा न बचे...!!

हर कोई उस ओर निहारे खड़े ऐसा ,
बारूदों के बीच मूक पंछी भी मरे...!
कड़वाहटें घुल घुल दफ्न हुई सीने में ,
दुश्मनों की हर जगह पैदावार ही बढ़े...!!

©Naveen Chauhan 
  डूबते शहर में रंजीशें बहुत है ,
मुल्क की सरहद पार कर चले..!
हर लिबास खूनी रंगों का खेल ,
यहां कोई ना जो अपना सा लगे..!

कुदरत भी बेपरवाह हो गई ,
मूंदी आंखों से जो उफ न करे..!
गलियारों में हर मां बिलखती ,
chauhannaveen0753

Nobita

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डूबते शहर में रंजीशें बहुत है , मुल्क की सरहद पार कर चले..! हर लिबास खूनी रंगों का खेल , यहां कोई ना जो अपना सा लगे..! कुदरत भी बेपरवाह हो गई , मूंदी आंखों से जो उफ न करे..! गलियारों में हर मां बिलखती , #Poetry

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