गर रात ना होती,,, क्या होता , रात में भागे उन , भगोड़ों का, गर रात ना होती । क्या होता , मुसाफिरों के , सुबह से शाम, तक , चल रहे , उन घोड़ों का , गर रात ना होती ।। क्या होता , अकेले में मिलते उन आशिक़ जोड़ों का, गर रात ना होती । क्या होता उन चोरों का , गर रात ना होती ,,,,,,,, क्या होता ,तारे गिनकर , वक़्त गुजारती , माही से , बिछड़ी , उन हूरों का , गर रात ना होती ।। क्या होता , महनत कश , उन मजदूरों का , गर रात ना होती । बिछड़े हुए यारों की शांत ,याद ना होती गर रात ना होती , चांदनी रातों , में , ख़ुद से , बात ना होती , गर रात ना होती । नींद किसी की , आंख ना होती , गर रात ना होती , निकाह की ,वो पहली रात ,वो सुहागरात ना होती , गर रात ना होती ।। जगते जुगनुओं की ,कोई विसात ना होती , गर रात ना होती , महाभारत में , सूर्यपुत्र करन की , मात ना होती , गर रात ना होती ।। और फकीरों को ए #काफ़िर जोगा गुलाम# "रूहानी मयखाने" की खैरात ना होती , गर रात ना होती ।। अपने यार से ," जोगा" अंदर से , उस कलंदर से , मुलाक़ात ना होती , गर रात ना होती ।। ZOGA BHAGSARIYA RAJASTHANI , KAFIR ZOGA GULAM ..........