जय के दृढ़ विश्वास-युक्त थे दीप्तिमान जिनके मुख-मंडल पर्वत को भी खंड-खंड कर रज-कण कर देने को चंचल फड़क रहे थे अति प्रचंड भुज— दंड शत्रु-मर्दन को विह्वल ग्राम-ग्राम से निकल-निकलकर ऐसे युवक चले दल के दल। ©Manoj Kumar Dubey #aanand