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अपने बचपन की वो शरारतें वो अनसुलझी हुई बातें वो

अपने बचपन की वो शरारतें
 वो अनसुलझी हुई बातें
 वो तारों भरी रातें 
 याद है मुझे
 वो मिट्टी को खाना
 न मिलने पर राख ही चबाना
 बिना वजह मुस्कुराना
 याद है मुझे
 वो पानी में नहाना
 किसी चीज के लिए जमीन पे लुढ़क जाना
 वो दिन भर चिल्लाना
 याद है मुझे
 अपनी आखों को मिचकना
 नीद में न होने पर भी बहाना बनाना
 फिर पापा का गोद में उठाना
 याद है मुझे
 किसी के मारने के बाद 
 वो घंटो भर सिसक सिसक रोना
 किसी की नजर पड़ते ही अं....हा शुरू होना
 उसे मार पड़ने के बाद ही शांत होना
 याद है मुझे
वो छोटे खिलौनों के पीछे भागना
१० रुपए के लिए नाचना
हर शाम राजदूत पे घूमना
याद है मुझे
वो आंधी में आमों को बीनना
और बारिश में नंगे घूमना
वो दांतो का टूटना
याद है मुझे
वो पैरों पे झूलना
चिड़िया उड़ का खेलना
लालटेन को हाथों से बुझाना
याद है मुझे
वो पेंसिल का चबाना
गले में बोलत टांग के लाना
बुआ के साथ साइकिल से आना
याद है मुझे
वो जानवरों का चराना
दादी का शाम को घर पर आना
फिर लूडो का मैदान सजाना
याद है मुझे
बादलों में चेहरे तलाशना
मिट्टी के घर बनाना
अपने हाथों की मूर्तियां सजाना
नौ दिनों तक आरती गाना
फिर अपनी टोली के साथ रामरेखा तक जाना
याद है मुझे
वो गर्मी की छुट्टियों में मामा के घर जाना 
हर दोपहर पानी की टंकी में नहाना
फिर मम्मा से ढेर सारी डाट खाना
रात को छत पे बिस्तर लगाना
याद है मुझे

©Prem Chandra Yadav #unfogettablelove 
#Childhood 
#Memories 
#Life 
Life is Just a dream
अपने बचपन की वो शरारतें
 वो अनसुलझी हुई बातें
 वो तारों भरी रातें 
 याद है मुझे
 वो मिट्टी को खाना
 न मिलने पर राख ही चबाना
 बिना वजह मुस्कुराना
 याद है मुझे
 वो पानी में नहाना
 किसी चीज के लिए जमीन पे लुढ़क जाना
 वो दिन भर चिल्लाना
 याद है मुझे
 अपनी आखों को मिचकना
 नीद में न होने पर भी बहाना बनाना
 फिर पापा का गोद में उठाना
 याद है मुझे
 किसी के मारने के बाद 
 वो घंटो भर सिसक सिसक रोना
 किसी की नजर पड़ते ही अं....हा शुरू होना
 उसे मार पड़ने के बाद ही शांत होना
 याद है मुझे
वो छोटे खिलौनों के पीछे भागना
१० रुपए के लिए नाचना
हर शाम राजदूत पे घूमना
याद है मुझे
वो आंधी में आमों को बीनना
और बारिश में नंगे घूमना
वो दांतो का टूटना
याद है मुझे
वो पैरों पे झूलना
चिड़िया उड़ का खेलना
लालटेन को हाथों से बुझाना
याद है मुझे
वो पेंसिल का चबाना
गले में बोलत टांग के लाना
बुआ के साथ साइकिल से आना
याद है मुझे
वो जानवरों का चराना
दादी का शाम को घर पर आना
फिर लूडो का मैदान सजाना
याद है मुझे
बादलों में चेहरे तलाशना
मिट्टी के घर बनाना
अपने हाथों की मूर्तियां सजाना
नौ दिनों तक आरती गाना
फिर अपनी टोली के साथ रामरेखा तक जाना
याद है मुझे
वो गर्मी की छुट्टियों में मामा के घर जाना 
हर दोपहर पानी की टंकी में नहाना
फिर मम्मा से ढेर सारी डाट खाना
रात को छत पे बिस्तर लगाना
याद है मुझे

©Prem Chandra Yadav #unfogettablelove 
#Childhood 
#Memories 
#Life 
Life is Just a dream