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ओह ज़िन्दगी ना मूंह चिढ़ा इस तरह, मैं पहले ही खुद

ओह ज़िन्दगी ना मूंह चिढ़ा इस तरह,
मैं पहले ही खुद से लाचार हूं,
बस दिखते हैं रास्ते ही रास्ते पर मंजिल नहीं कहीं,
चलते चलते थक गया हूं,इन रास्तों से बेजार हूं,
ऐ जिन्दगी तेरे सब कदम इस तरह बेताल हैं,
मैं तेरे साथ चल रहा हूं यह मेरा कमाल है,
मुझ लड़खड़ाते को देख कर ना मुस्करा इस तरह,
ओह ज़िन्दगी ना मूंह चिढ़ा इस तरह।

©Harvinder Ahuja
  #ओह ज़िन्दगी Anshu writer Yogendra Nath Yogi Sujata jha Anuradha Sharma Rakesh Srivastava

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