सूखते सर कूप वापी जलचरी कुंठित विकल है प्राण अवगुंठित हृदय में पीयूष रस छलकाओ तुम झिहिर बरसो मेघ निर्झर अज्ञातवास शेष छोड़ आ जाओ तुम। त्योरियां माथे चढ़ी हैं वेदना अति व्याप्त जीवन बीज नभ के द्वार ताके कृषक मन हर्षाओ अब तुम झिहिर बदरा बूंद बरसो अज्ञातवास शेष छोड़ आ जाओ तुम ! प्रीति #मेघ बरसो (दूसरी किश्त) #yqhindi #yqhindikavtia सर: तालाब , कूप : कुआं, वापी: छोटे जलाशय , जलचरी: मछली , पीयूष: अमृत , अवगुंठित:। चारों ओर से घिरा हुआ। अज्ञातवास : गुप्तवास