ये लो! आज जिंदगी पे हंसी सी आ गई, हंसते-हंसते दम भी फूल गया, इस बड़े से शहर ने नंगा कर दिया, चाह थी कुछ नहीं कर सका तो इज़्जत तो है, लेकिन फरेबी दुनिया ने आज मुझे बेइज्जत कर दिया, क्या दुहाई दूं कि मैं गरीब हूँ, मेरे घर के पिताजी को नौकरी नहीं है, माँ है तो सही पर जान नहीं है, महाजन से बचने को मारा फिरता हूँ, कमाई का दूसरा साधन तलाशता रहता, लो फिर ये हंसी आ गई, गया साधन तलाशने को,तमाशा बन के रह गया, जिनके पास जाता था मैं फक्र से, आज सबसे अकेला रह गया,2 फिर भी हंसी आ गई अकेला हंसा