जलियांवाला बाग हत्याकांड:- यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते। कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से, वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे। परिमल-हीन पराग दाग़ सा बना पड़ा है, हा! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है। ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना, यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना। कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें, भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें। कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर, कलियाँ उनके लिये गिराना थोड़ी ला कर। तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर, शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर। यह सब करना, किन्तु यहाँ मत शोर मचाना, यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना। ~सुभद्रा कुमारी चौहान जलियांवाला बाग हत्याकांड