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मैन क्या किया है अब कहना मजाक लगता है तू नया नया

मैन क्या किया है अब कहना मजाक लगता है 
तू नया नया है उड़ पर समझ पेड़ जड़ पे ही खड़ा रहता है ।। मेरा मानना हैं कि आज के दौर में रिश्तों का बिखरना कितना आसान हो गया हैं, हां, अब तक जितने शादियों का टूटना देखा
(माफ़ कीजियेगा, शौकिया नहीं, वकालत पेशा ही ऐसा हैं), मैने यही पाया, इंसान साथ रहकर भी कितना अकेला हैं।
यदि हम पीछे जाएं, अपने आस–पास, लोग तीस साल से साथ में हैं। कुछ तो बात होगी ना! पर आज कल, एक साल भी साथ रहना मुश्किल हैं क्या? 
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मान लीजिए, मेरी शादी हो चुकी हैं, और आज भी मैं अपनी पत्नी से नहीं बल्कि किसी ऐसे दोस्त से अपनी सारी बात कहता हूं जो मुझे सुनती हैं। जब भी मौका मिला मैंने उससे अपनी हर बात कह दिया। अब, जब मैं अपने पत्नी से बात करने आता हूं, मेरे पास तो वो शब्द हैं ही नहीं, वो सारे तो अपने मित्र से कहकर  निकाल दिया और मेरे पास कुछ बचा? शायद हां, या ना! पर मेरी पत्नी के पास तो सब कुछ बचा हैं। बस! शुरुआत यहीं से होती हैं। और पता काफ़ी देर से चलता हैं।
अब यही अगर मेरी पत्नी ऐसा कुछ करें तो सोचिए, किसी को जरूरत ही नहीं एक दूसरे की, दोनों की जरूरत पूरी हो रही हैं अब। पर एक वक्त बाद जब दोनों का सामना खुद से होता हैं, सब कुछ बिखर चुका होता हैं।

मैं क्या कहना चाह रहा हूं, नहीं पता, पर बात इतनी सी हैं, आज के दौर में एक वक्त के बाद ख़ुद को सीमित रखना ज़रूरी हैं।
मैन क्या किया है अब कहना मजाक लगता है 
तू नया नया है उड़ पर समझ पेड़ जड़ पे ही खड़ा रहता है ।। मेरा मानना हैं कि आज के दौर में रिश्तों का बिखरना कितना आसान हो गया हैं, हां, अब तक जितने शादियों का टूटना देखा
(माफ़ कीजियेगा, शौकिया नहीं, वकालत पेशा ही ऐसा हैं), मैने यही पाया, इंसान साथ रहकर भी कितना अकेला हैं।
यदि हम पीछे जाएं, अपने आस–पास, लोग तीस साल से साथ में हैं। कुछ तो बात होगी ना! पर आज कल, एक साल भी साथ रहना मुश्किल हैं क्या? 
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मान लीजिए, मेरी शादी हो चुकी हैं, और आज भी मैं अपनी पत्नी से नहीं बल्कि किसी ऐसे दोस्त से अपनी सारी बात कहता हूं जो मुझे सुनती हैं। जब भी मौका मिला मैंने उससे अपनी हर बात कह दिया। अब, जब मैं अपने पत्नी से बात करने आता हूं, मेरे पास तो वो शब्द हैं ही नहीं, वो सारे तो अपने मित्र से कहकर  निकाल दिया और मेरे पास कुछ बचा? शायद हां, या ना! पर मेरी पत्नी के पास तो सब कुछ बचा हैं। बस! शुरुआत यहीं से होती हैं। और पता काफ़ी देर से चलता हैं।
अब यही अगर मेरी पत्नी ऐसा कुछ करें तो सोचिए, किसी को जरूरत ही नहीं एक दूसरे की, दोनों की जरूरत पूरी हो रही हैं अब। पर एक वक्त बाद जब दोनों का सामना खुद से होता हैं, सब कुछ बिखर चुका होता हैं।

मैं क्या कहना चाह रहा हूं, नहीं पता, पर बात इतनी सी हैं, आज के दौर में एक वक्त के बाद ख़ुद को सीमित रखना ज़रूरी हैं।