White जब मैं अकेला था... मैं कल भी अकेला था, मैं आज भी अकेला हूं, मंज़िल के तलाश में, संघर्ष के पथ पर चला हूं। बंजर जिस्म में शिद्दत-ए-तिश्नागी से लड़ने लगा हूं। कतरा – कतरा बहे आंसुओं को पीने लगा हूं।। नहीं मिली खुशी तो गमों के साये में जीने लगा हूं। कोरे कागज़ पर लहू से जीवन उकेरने लगा हूं ।। बिकते इंसाँ को देख अरमानों को दफनाने लगा हूं। मुर्दों के शहर में कफ़न का हिसाब रखने लगा हूं।। आलम ये है कि खुदगर्जों पे किताब लिख रहा हूं, बदलते हर मौसम का मिजाज लिख रहा हूं। ©Dr.Gopal sahu #Sad_shayri #hindi_kavita #hindi_gajal