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गर्दिश भरी ज़िन्दगी सपुर्द-ए-मुर्शिद कर दी मुर्शिद

गर्दिश भरी ज़िन्दगी सपुर्द-ए-मुर्शिद कर दी
मुर्शिद ने फिर खत्म मेरी हर गर्दिश कर दी।
हल मिलता न था मेरी किसी भी मुश्किल का
उसकी पनाह ने मेरी हर मुश्किल हल कर दी।
टाँगे खींच के हमेशा हराता था जो जमाना मुझे
मुर्शिद ने बाँह पकड़ के जिंदगी सफल कर दी।
कैसे शुक्राना करूँ कि सब क़र्ज़ अदा हो जाये
सदक़े तेरी इनायत के तूने ऐसी रहमत कर दी।

गर्दिश भारी ज़िन्दगी सपुर्द-ए-मुर्शिद कर दी
मुर्शिद ने फिर खत्म मेरी हर गर्दिश कर दी।

बी डी शर्मा चंडीगढ़ मुर्शिद
गर्दिश भरी ज़िन्दगी सपुर्द-ए-मुर्शिद कर दी
मुर्शिद ने फिर खत्म मेरी हर गर्दिश कर दी।
हल मिलता न था मेरी किसी भी मुश्किल का
उसकी पनाह ने मेरी हर मुश्किल हल कर दी।
टाँगे खींच के हमेशा हराता था जो जमाना मुझे
मुर्शिद ने बाँह पकड़ के जिंदगी सफल कर दी।
कैसे शुक्राना करूँ कि सब क़र्ज़ अदा हो जाये
सदक़े तेरी इनायत के तूने ऐसी रहमत कर दी।

गर्दिश भारी ज़िन्दगी सपुर्द-ए-मुर्शिद कर दी
मुर्शिद ने फिर खत्म मेरी हर गर्दिश कर दी।

बी डी शर्मा चंडीगढ़ मुर्शिद
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