"जरा समझो "कहानी संग्रह सुशीला टाक भोरे द्वारा लिखित दस कहानियो का संग्रह है। हर कहानी स्त्री के अस्तित्व बोध को दर्शाती है। इन कहानियों में स्त्री की गुलामी के प्रति विद्रोह, उनकी मुक्ति की तड़प को अभिव्यक्त किया गया है। इन कहानियों के माध्यम से समाज के लोगों को समझाने का प्रयत्न किया गया है। समझना तो सभी वर्ग के लोगों को है- चाहे मैनेजर हो अजय पंडित, विजय यादव या स्वय खेमचंद ही क्यों ना हो ( कहानी के पात्र)।दलितों पर अत्याचार और दलित संहार की घटनाएं देशव्यापी रूप में लगातार घट रही हैं। यही कारण है कि शताब्दी बीत गई है, समाज सामाजिक आंदोलन और समाज परिवर्तनों के प्रयत्न में मगर अभी भी समाज में वर्णवाद ,जातिवाद मौजूद है। इन सभी कहानियों में दलित विमर्श और नारी विमर्श की एक अलग ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए लेखिका द्वारा दिया गया नाम "जरा समझो"बिल्कुल सटीक है! जरा समझो #raindrops