आज यहां फिर हनन हो रहा, मौलिक अधिकारों का। आज यहां न मोल रह गया, निर्वाचित सरकारों का।। आज यहां न पूंछे कोई, हाल अन्नदाता का। आज यहां न मतलब कोई, लोकतंत्र, मतदाता का।। आज यहां सब मारे जा रहें, जाति, धर्म के नाम पर। आज पत्रकार प्रश्न न पूंछे, सरकारों से काम पर।। आज विधायकों को पिटवाकर, सत्ताधीश मुस्काते हैं। आज यहां सत्ता से आम पर, प्रश्न पूंछे जाते हैं। आज यहां नौकरी नहीं है युवा बदहाल है। और वो कह रहे देश बढ़ रहा, जनता खुशहाल है।। आज यहां हाल है जैसा, यह अंधकार नगरी हो। संविधान, लोकतंत्र, देश पर, जैसे छाई काली बदरी हो।। - प्रशांत वर्मा ©@BabaJapnaam Presenting before you - #आज_यहां #Politics #sarcasm #democracy #DilKiAwaaz