" एक सफर पे चले हैं जैसे कोई कारवां हो , जाने कब - कहां - कैसे तेरी तलाश खत्म हो , कुछ अधुरी कुछ अनसुलझी सी पहलू है कब से , यूं मिल तु की हर मुकाम कहीं ना कहीं मुकम्मल हो ." --- रबिन्द्र राम " एक सफर पे चले हैं जैसे कोई कारवां हो , जाने कब - कहां - कैसे तेरी तलाश खत्म हो , कुछ अधुरी कुछ अनसुलझी सी पहलू है कब से , यूं मिल तु की हर मुकाम कहीं ना कहीं मुकम्मल हो ." --- रबिन्द्र राम #सफर #कारवां #तलाश #अनसुलझी #पहलू #मुकाम #मुकम्मल