तुम कितने निस्वार्थ हो सरल हो सहज हो निर्मल हो बचपन में देखा जैसा तुम्हें आज भी कितने निश्छल हो पल पल रंग बदल रहा है जमाना तुम अब भी सतरंगी बादल हो शनिवार और इतवार का इतराना तुमसे ही संभव तुम से ही प्रबल हो तुम सब जग के ज्ञाता आस्था के दाता ज्ञान के भवसागर में प्रकाशित भुजबल हो #yolewrimo में लिखें, आज एक पत्र #दूरदर्शनकेनाम #letters #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #रूप_की_गलियाँ #rs_rupendra05 #प्रेम