"शिकस्त" सही वक्त पे सही चाल से मिलती है, हमे हराने मे तो सारा जमाना लगा है। पर वक्त की मेहरबानी है के ओ हमे कुछ ओर बनाने मे लगा है। मंजिल को तो हर मुसाफ़िर पा लेता है, दिल है के अब हर रहा को ही मंजिल बनाने मे लगा है "शिकस्त"