*चांद भी क्या खूब है,* *न सर पर घूंघट है,* *न चेहरे पे बुरका,* *कभी करवाचौथ का हो गया,* *तो कभी ईद का,* *तो कभी ग्रहण का* *अगर* *ज़मीन पर होता तो* *टूटकर विवादों मे होता,* *अदालत की सुनवाइयों में होता* *अखबार की सुर्ख़ियों में होता* *लेकिन* *शुक्र है....* *आसमान में बादलों की गोद में है,* *इसीलिए ज़मीन पर कविताओं* *और ग़ज़लों में महफूज़ है”* किसी की गजल