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ये जालिम जमाना हाए, क्यों मुझको सताए क्यों मेरी थो

ये जालिम जमाना हाए, क्यों मुझको सताए
क्यों मेरी थोड़ी सी खुशी इसको रास न आए
पहले ये मुझको कितना हसाए
फिर पीठ पे घोप के छूरा मुझे तड़पाए
हाय ये जालिम जमाना मुझको कितना रुलाए
ना भुलाए जाने वाले जख्म देता है
फिर नमक डाल कर इन जख्मों को कुरेदता है
मेरी नींद चैन सब नोच खाए
हाय ये जालिम जमाना मुझको कितना सताए।

©Shayri mahi
  ज़ालिम जमाना

ज़ालिम जमाना #Shayari

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