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" किन्नर

                                         " किन्नर "

ये मसला उस समय का है जब में अपने पापा जी के साथ बाज़ार कुछ सामान लेने गया हुआ था पापा जी अपने कुछ अजीज़ दोस्तों के साथ बातों में मशगूल थे औऱ में इन सब को अनदेखा कर अपनी नज़रें यहाँ-वहाँ दौड़ा रहा था तभी मेरी नज़र एक सुनार की दुकान पर आ रुका, गोरी चिट्टी, बदन में लाल साड़ी काले ब्लाउस का संयोग, सुलझे लंबे बाल, माथे में बिंदी से कोई सुनार के दुकान का सोभा बढ़ा रहा था में पापा जी से नज़रे चुरा उसे एक टक लगाए निहारता रहा, तभी हवा का एक प्यारा सा झोंका आया औऱ उसके कुछ बाल हवा में लहराते हुए उसके चेहरे को ढकते चले गय, इस बीच उसका अपने बाहिनें हाथ से जुल्फों को अपने कान के पीछे ले जाना हाय मेरी आँखों को चकाचोंध कर गया तभी वो अपने क़दम उस दुकान से रुक्सत करने लगी औऱ मेरी आँखों से ओझल होते चले गई उसका मुझसे दूर जाना मेरी नज़रों को खटकने लगा, में पापा जी से अभी आता हूं कि बात बोलकर कुछ देर उसके पीछे-पीछे जाता गया अब वो एक सब्जी की दुकान पर ठहर गई में भी जान बूझकर उस सब्जी की दुकान पर जाकर सब्जी का दाम पता करने लगा तभी उसने अपने भारी आवाज़ में दुकानदार से ऐ चल पैसे निकाल की बात कही, ये सब्द सुन थोड़ी देर के लिए में हतप्रभ हो गया औऱ अपने क़दम पीछे लेते हुए भगवान को कोसने लगा ऐसा "ज़ुल्म क्यों" इतनी सुंदर कन्या को उसने किन्नर का दर्जा जो दिया था औऱ में मायूस चुपचाप वापस लौट आया वैसे इस बात को एक लम्हा गुजर चुका है पर उसका वो नूरानी चेहरा औऱ उस पल का हर एक लम्हा मेरे नज़रों से कभी ओझल नही होता।

©Akhilesh Dhurve
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