*आ गया मधुमास* खुले सकल अन्ध-बन्ध आ गये जो तुम, क्या कहूं मेरे हृदय को भा गये जो तुम। आ गया मधुमास , जीवन पुष्प सौरभ से भरे, प्रश्न सारे मौन ऐसे, छा गये जो तुम ।। प्रश्न के उत्तर कुहक से बोलते हो ज्यों, दृष्टि पथ में भेद रस के घोलते हो ज्यों। खुल गये कपाट वन स्वतंत्र गंध गूंजते, मिलिंद वृंद मोद द्वार खोलते हो ज्यों।। मिल जाय ज्यों दीन मीन को अथाह जल, धीवरों के क्रूर काल जाल से निकल। मिल गयी खुशी कि जैसे वेदना पिघल गयी, छू हृदय के तार , अश्रु हैं गये मचल ।। ------- डा.सत्य नारायण 'पथिक' ©SATYANARAYAN PATHIK कविता मधुमास