याद आए हैं अहद-ए-जुनूं के खोए हुए दिलदार बहुत उन से दूर बसाई बस्ती जिन से हमे था प्यार बहुत इक इक कर के खिली थीं कलियां एक इक कर के फूल गए इक इक कर के हम से बिछडे़ बाग -ए -जहां मे यार बहुत हुस्न के जल्वे आम हैं लेकिन जौक -ए-नजारा आम नही इश्क बहुत मुश्किल है लेकिन इश्क के दावेदार बहुत जख्म कहो या खिलती कलियां हाथ मगर गुलदस्ता है बाग -ए-वफा से हमने चुने हैं फुल बहुत और खार बहुत जो भी मिला है ले आए है दाग -ए-दिल या दाग -ए-जिगर वादी वादी मंजिल मंजिल भटके है "सरदार" बहुत,, याद आए है अहद -ए-जुंनू के खोए हुए दिलदार बहुत,,