जब गुजरता हूँ शहर की गलियों से दुकान कि उधारी मुँह ताकती है मेरा , कुछ दिनों की मोहलत ज़ेब पर हाथ रख चला जाता हूं वो समझ जाती है हाल मेरा " ©umesh saroj गोसाई की बाजार