हिटलर बुढ़ापे मैं जिस प्रकार मृत्यु के शहद की प्रतीक्षा मेरे होंठों को तरसाती थी वहां मेरे तड़पते बिलकते मन आँगन मैं एक युद सा पल रहा था. देखा जाये तो वहां बचा ही क्या था मेरे जगत मैं, बगवान जाने कहाँ से एक आंधी उठी, जिस ने न जाने किस राख के एक अज्ञात दिएर से चिंगारी उठा लायी और यहाँ छोड़ दी बिना किसी सीमा और संयम के. फिर क्या उस चिंगारी के अनेक टुकड़े हो गए और उन मैं अनेक नयी चिंगारियां जन्मी , कुछ शंड के लिए मैं ने टिमटिमाती चिंगारियों सा अहंकार भरा चोगा पहना , तो पता चला की मनुष्य भयभीत हो रहे है . यम नाम की चिंगारी को देख कर निष्पाप दूध पीते बचे कबरू के अंधकार को खोदने लगे. स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है की यदि भवन को प्रतिभाशाली वास्तुकार मिले तो यक़ीनन उस के स्थम्बू मैं कोई नकारात्मक बात न होगी . बदलते युगों के साथ वास्तुकार कसाई बना और मुज से जहाँ नाव का चप्पू संभाला न गया वहां आधे रस्ते मैं मेरी शाम होगयी और मैं देवतावूं सा मुखौटा बनाने लगा. मस्तिक्षे की उलजी तारों मैं मनुष्य कई नए पुराने दास्ताँ लिए बैठा है , मैं बे एक दास्ताँ लिए भवई प्रदर्शन करते हुए भउदिमान व्यक्तियों के बाजार मैं चल पड़ा . मानवता के घोडे पे काठी चढ़यी और यज़ीद को मन मैं सुलाकर छाती पीट पीट के चिल्ला उठा "मैं हनुमान हूँ और राम मेरे ह्रदय मैं बसे है " पर्दे के पीछे का अँधेरा बहोत फैल चूका था और राज सिंहासन की लालसा ने मुझे हिटलर बनाया था . समय ये था जब मैं जन्मा, फिर मैं ने इतने सरे देश जीत लिए लेकिन किसी का दिल न जीत सका. मुझे बताईये तो ज़रा आप ने कितने जीत लिए ... राज़ी ताहिर बगत ©Razi Tahir #hitler