Nojoto: Largest Storytelling Platform

कितनी बेबस होती है मजबूरियाँ। टूट कर रोती हैं जिस

कितनी  बेबस होती है मजबूरियाँ।
टूट कर रोती हैं जिसमें सिसकियाँ।
रोज़ी रोटी के लिए अपने सगों से-
झेलनी  पड़ती  है अक्सर दूरियाँ।

हैं  सभी को खींचती लाचारियाँ।
कौन  सहना  चाहता  दुश्वारियाँ।
ग़र  जरुरत  होती न  इतनी बड़ी-
सब चलाते अपने मन की मर्जियाँ।

हर क़दम  उठती है  ले पाबंदियाँ।
नर्म  लहज़ों  में  समेटे  तल्ख़ियाँ।
शर्त  करती  है  हज़ारों  ही  सितम-
जोश हो जाता है जलकर के धुआँ।

क़ैद  में  रोने  लगे  आज़ादियाँ।
नाउमीदी  की  बढ़े  आबादियाँ।
कुफ़्र सी यह ज़िन्दगी लगने लगे-
जब मिले अपना न कोई मेहरबाँ।

दर्द की दिल में मचलती तितलियाँ।
सौ  कहानी  कह  रही ख़ामोशियाँ।
बेबसी  रोती  है  घुट घुट  रात दिन- 
कौन  देगा हौसलों  की  थपकियाँ।

ज़ुल्म की क्यूँकर गिराए बिजलियाँ।
क्यूँ  न  बरसे राहतों  की  बदलियाँ।
ऐ  ख़ुदा  ग़र  तू  ही  ढाएगा सितम-
कौन फिर  आखिर  सुनेगा अर्जियाँ।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #मजबूरियाँ
कितनी  बेबस होती है मजबूरियाँ।
टूट कर रोती हैं जिसमें सिसकियाँ।
रोज़ी रोटी के लिए अपने सगों से-
झेलनी  पड़ती  है अक्सर दूरियाँ।

हैं  सभी को खींचती लाचारियाँ।
कौन  सहना  चाहता  दुश्वारियाँ।
ग़र  जरुरत  होती न  इतनी बड़ी-
सब चलाते अपने मन की मर्जियाँ।

हर क़दम  उठती है  ले पाबंदियाँ।
नर्म  लहज़ों  में  समेटे  तल्ख़ियाँ।
शर्त  करती  है  हज़ारों  ही  सितम-
जोश हो जाता है जलकर के धुआँ।

क़ैद  में  रोने  लगे  आज़ादियाँ।
नाउमीदी  की  बढ़े  आबादियाँ।
कुफ़्र सी यह ज़िन्दगी लगने लगे-
जब मिले अपना न कोई मेहरबाँ।

दर्द की दिल में मचलती तितलियाँ।
सौ  कहानी  कह  रही ख़ामोशियाँ।
बेबसी  रोती  है  घुट घुट  रात दिन- 
कौन  देगा हौसलों  की  थपकियाँ।

ज़ुल्म की क्यूँकर गिराए बिजलियाँ।
क्यूँ  न  बरसे राहतों  की  बदलियाँ।
ऐ  ख़ुदा  ग़र  तू  ही  ढाएगा सितम-
कौन फिर  आखिर  सुनेगा अर्जियाँ।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #मजबूरियाँ