"रावण संवाद" कह दो राम से रावण पुनः वापस आया हैं, तब एक था,अब हर घर मे छाया हैं, मर के भी पुनः दशानन आया हैं, इस कलियुग में तुझे समझाने आया हैं, सतयुग में होंगे तुम मर्यादा परुषोत्तम राम, कलियुग में काल सौगंध न होगा अब विराम, कह दो राम से रावण पुनः वापस आया हैं, तेरे शर से आघात हुआ, मृत्यु को मैं प्राप्त हुआ, फिर पुनः कलियुग में भयंकर मैं व्याप्त हुआ, कहीं पुत्र बन अपने माँ-बाप को सताया, तो कहीं पति बन पत्नी पर जोर जताया, तब एक अपहरण कर मृत्यु को पाया, अब अनगिनत अपहरण कर भी जोर दिखाया, कह दो राम से रावण पुनः वापस आया हैं, छल कपट का ये कलयुगी सम्राज्य बनाया, इस बार कोई विभीषण न होगा, जिसने मेरा भेद बताया, मृत्यु के भय को भी भयंकर भयभीत किया, लंकापति की उपाधि से खुद को पुनः मनोनीत किया, अबकी जो ये नाश बढेगा चाह कर भी तू न रोक सकेगा, तेरे शर में वो शक्ति नही जो मुझको तू रोक सकेगा, कह दो राम से रावण पुनः वापस आया हैं, तब तू वास्तविक था,तेरे सत्य पुरुषत्व से मैं घबराया, अब तेरे भेष में अज्ञानी मनुष्य ने खुद को राम बतलाया, मैं जल रहा फिर भी असमंजस में सोच रहा था, मैं मेरा जलता शरीर तुझे ही इस कलियुग में खोज रहा था, कह दो राम से रावण पुनः वापस आया हैं, तब एक था अब हर घर मे छाया हैं। धन्यवाद। विवेक सिंह राजावत। रावण का संवाद