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एक मुक्तक:- मुहब्बत किसको कहते हैं यही बतला रह

एक मुक्तक:-
 
 मुहब्बत किसको कहते हैं
 यही बतला रहा हूँ मैं,
 इमारत ख़्वाब की तुमको
 सही दिखला रहा हूँ मैं।
 किसीकी ख्वाहिशें जबतक मुकम्मल हो नहीं पातीं!
 इबादत होती रहती है
 यही सिखला रहा हूँ मैं।।

कवि रवि कहर

©ravi kahar
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