सवेरा हुआ है फिर से बीती रात को कुचल के फिर से रोशनी आयी है पलक के द्वार पे मचल के वैसे भले ही बंद थे आंखों के पर्दे रात भर पर ख्वाहिशों के मेले में कोई खुद को ढूढा उम्र भर वह सूरज उस संध्या की , चांदनी के लिए जो ढल रहा है। पर वह चल रहा है, देखा वह चल रहा है। #pooja negi,#samarth singh,#paakhi,#Nutan sharma