शाम भी किस तरह रंग बदल गयी, वो आयी तो, मदहोश, नशीली, रंगीन हो गयी, और सुर्ख होंठों पर एक रवानी दे गयी। और गयी तो बेरंग ग़मगीन हो गयी, होंठों से मुस्कान छीनकर, आँखों में पानी दे गयी।। शाम भी किस तरह रंग बदल गयी..... ख्वाहिशों के जहां मे मंजर ऐसा था, पथरीली राहों पर भी कलियां बिछ गयी, जो नजरे कभी भटकी नहीं, उसे भी भटका गयी। और जाते-जाते भौरों के गुंजन भी ले गयी, सुकून मन का, चैन दिल का और आश नयन का ले गयी।। शाम भी किस तरह रंग बदल गयी...... पल में ही सूखे पते, टूटी डालियाँ सब हरे-हरे हो गये, निर्जन राह, और निर्वन फ़िजा को बहार दे गयी। और पल में ही निरस मन को दर्द रस से भर गयी, जो दिल कहीं अटका नहीं, उसे खुद पर अटका गयी, लबों से लफ्ज़, बातों से बात और जीवन से कहानी ले गयी।। शाम भी किस तरह रंग बदल गयी.... शाम भी किस तरह रंग बदल गयी, वो आयी तो, मदहोश, नशीली, रंगीन हो गयी, और सुर्ख होंठों पर एक रवानी दे गयी। और गयी तो बेरंग ग़मगीन हो गयी, होंठों से मुस्कान छीनकर, आँखों में पानी दे गयी।। शाम भी किस तरह रंग बदल गयी..... ©vivek_kumar_shukla