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बरसात भी नहीं है और बादल गरज रहे हैं, सुलझी

बरसात भी नहीं है 
  और बादल गरज रहे हैं,
    सुलझी हुई लटे हैं 
      और हम उलझ रहे हैं,
        मदमस्त एक भँवरा 
          क्या चाहता #कली से,
           तुम भी समझ रहे हो
 हम भी समझ रहे हैं..

©R.V. Chittrangad  9839983105
  मुहब्बत की बारिश
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