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शब-ए-माहताब मे मै जागता रहा तमाम रात मै भागता रहा

शब-ए-माहताब मे मै जागता रहा
तमाम रात मै भागता रहा 
कोई गम नही है मुझे 
फकत इस गम के 
कि मै मुकम्मल होकर भी मुकम्मल हो ना सका 
और कुछ ना-मुकम्मल लोगो से मेरा वास्ता रहा
शब-ए-माहताब मे मै जागता रहा.....

©GULSHAN KUMAR शब -ए- माहताब..
शब-ए-माहताब मे मै जागता रहा
तमाम रात मै भागता रहा 
कोई गम नही है मुझे 
फकत इस गम के 
कि मै मुकम्मल होकर भी मुकम्मल हो ना सका 
और कुछ ना-मुकम्मल लोगो से मेरा वास्ता रहा
शब-ए-माहताब मे मै जागता रहा.....

©GULSHAN KUMAR शब -ए- माहताब..