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सुनहरे बचपन की चाह में, जवानी से अब जले रहे..! उभ

सुनहरे बचपन की चाह में,
जवानी से अब जले रहे..!

उभरते देखते रहे दूजे को,
पर ख़ुद साँझ से ढले रहे..!

खेल खिलौने से परे,
ग़म के नौ ग्रह भरे..!

सुख की छाया जैसे माया,
ममता मोह से न हरे..!

ख़ुद के अरमानों की लाश,
आस काश में खले रहे..!

खुशियाँ रुकी न कुछ पहर,
सुख जीवन से यूँ टले रहे..!

खटकते रहे नज़रों में सभी की,
जीवन में कुछ यूँ बुरे भले रहे..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #addiction #chah