मेरा जीवन नितांत निर्जन, वन के जैसा लगता था । भूल से भी कोई मिलने आता, पलभर में ही थकता था ।। वही समय था जब जकड़ा, मुझको "मेरी तन्हाई" ने । तोड़ दिया था कहीं से मुझको, असमय उसकी विदाई ने ।। किन्तु समय ने ली अन्गणाई, एक दिन आकर मिली कोई । शान्त बड़ा था किंचित मैं तो, पास आकर बैठी वो ही।। बात बात में मुझे हंसाकर, बदल ही दी मेरी दुनिया । दोनों ही थे तीस वर्ष के, पुनः बस गया मेरा जहाँ।। धन्यवाद । ©bhishma pratap singh #मेरी तन्हाई#हिन्दी कविता#सितंबर संगीत#भीष्म प्रताप सिंह#लव स्टोरी#nojoto spardha