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कि मैं एक किनारा था, तुम दूसरा किनारा, कलकल बहती

कि मैं एक किनारा था, तुम दूसरा किनारा, 
कलकल बहती नदी, बहती ये जीवन धारा। 

मिले जो हम, तो बने एक दूजे का सहारा,
मैं से तुम, तुम से हम, हम से घर हमारा।

कितना अच्छा लगता है, पाकर साथ तुम्हारा,
तू मुझमें है, जैसे आसमां पे चमकता सितारा।

कि खामोशियाँ भी, शुकून देती हैं रातों की,
जब हाथों में मेरे, ऐ सनम हाथ हो तुम्हारा।

मत पूछ मेरे महबूब, तुम बिन मेरा क्या वजूद,
कि चाँदनी के बिना, कहाँ चाँद का उजियारा।

©Diwan G
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