इक़ जैसे वो दो बदन और इजाज़त भी इश्क़ की तरक़्क़ी के माईने हमें कुछ यूँ मिले तो यूँ ही सही जाने क्या क्या उधेड़ आई नस्लें सदियां गवाह हैं हमने अपने पैबंद कुछ यूँ सिले तो यूँ ही सही . धीर पैबंद