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उम्र नहीं बेशक इतनी पर, ग़मों से काफी अनुभव पा गया.

उम्र नहीं बेशक इतनी पर,
ग़मों से काफी अनुभव पा गया..!

हौसलों के पंख तोड़ती दुनियाँ को,
मुझे करारा जवाब देना आ गया..!

सच है ये या है कोई छलावा,
हार कर ज़िन्दगी से तेज़ाब में नहा गया..!

कैसे हँसते हैं दुःख में भी देखो,
शायद मुझे भी जीना आ गया..!

जी रहा हूँ मरने की आस लिए,
ग़म-ए-शराब पीना आ गया..!

मेरी खुशियों को किसी की,
बद्दुआओं का असर खा गया..!

सुख की धूप ख़त्म हुई हो जैसे,
दुःख का बादल जीवन में छा गया..!

हक़ीक़त से मेरी अनजान मैं ख़ुद ही,
जख्मों को सीना आ गया..!

तकदीर का तमाशा चलता रहा,
पर जीवन यूँ थम सा गया..!

झूठ पर बसी रही दुनियाँ और,
राम नाम सत्य है कहा गया..!

©SHIVA KANT(Shayar) #Apocalypse #anubhav