तमाम हसरतों को ज़हन में लिए, हम खुद के ही आज कल अन्दर नहीं रहते , दुनियाँ जीतने की जिद्द तो बेशक है, पर खुद को हम कभी सिकन्दर नहीं कहते, ख्याल हाँ ये तो आते हैं हमें लेकिन, हम किस शय का हिस्सा हैं कह नहीं सकते, समझने की कोशिश तो करती है दुनियाँ हमें, समझ सकें ऐसा किरदार ही हम उनकी नज़र नहीं रखते, क्या है ,क्यूँ है, किस लिए है ये हाल अपना, तुमको क्या बताएँ हम खुद कुछ कह नहीं सकते, ये कशमकश का तिलिस्म टूटना तो चाहिए, पर पर्दा गिरने पर क्या होगी तस्वीर कुछ कह नहीं सकते, उलझी हुई इस रचना में खुद को उलझा हुआ ही पाता हूँ, कोई नई बात नहीं है मैं खुद खुदको समझ नहीं आता हूँ। ©Pràteek Siñgh #Disapear #lost #world #Unable #thought #booklover