........ मेरे गुरुवर....... कद उचा है जिनका हिमालय सा , गहराई है जिनका सागर सा, जो आलोक विखेरे सूर्य सा, हैं ईश जो ज्ञान के भंडार का, कुसुम सा कोमल मन हो जिनका, दूजा रुप है वो जग में रब का। कलम पकड़ना उनसे सिखा, सदभाव-समर्पन उनसे सिखा, जिसने चलना सिखलाया, गिर कर उठना भी बतलाया, जीवन की अनजान डगर पर, अंधकार से लड़कर हमें प्रकाश दिया। हो सुगम यात्रा जीवन का मेरा, हर संभव जिसने प्रयास किया। अपनों की सूची में ना उनकी कहीं जिक्र थी, पर फिर भी ना जाने क्यों उन्हें मेरी फिक्र थी इतनी ? आप अगर न होते जीवन में, ज्ञान-अमृत ना मैं पी पाता, आज शायद मैं यह लिख न पाता ज्ञान पिपासा ना मैं अपनी बुझा पाता । है आरजू मेरी आपसे कि जीवन भर यूँ ही आपका साथ मिले, लडखडाऊं जब भी कभी जीवन में सामने आपका हाथ मिले । हो स्वीकार हे गुरुवर वंदन मेरा, जो चुका ना पाउ मै जीवन में, इतना बड़ा है ऋण तेरा। 🖊 अभिषेक तिवारी #गुरूवर