तू ही तू इक़ दिखे नज़रों को बस मेरी, दिल के धागे से बाँधा है धड़कनों को तेरी, हो ज़मीनी फ़ासिले पर एहसास ज़िन्दा अभी, देना न तू कभी रिहाई मुझको यादों से तेरी। अब राहतों की साँसे भी न मयस्सर इक़ घड़ी, छोड़ गया है तू जबसे मौत सर पे चढ़ी, हाथों से हाथ हैं छूटे पर एहसास ज़िन्दा अभी, बहता है तू इन आँखों से याद आती बड़ी। बांटा है मैंने सब इक़ दुख ही न बांटा कभी, हवाओं में तेरी आहट है ये वक़्त कटता नहीं, बांहों में नहीं है बांहें पर एहसास ज़िन्दा अभी, लेना ख़बर साजना तुम, तुम बिन मैं ज़िन्दा नहीं। ♥️ Challenge-785 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।