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कहां से लाऊं मैं कल्पतरू जो अंतस की पीड़ा को अप

कहां से लाऊं 
मैं 
कल्पतरू जो
अंतस की पीड़ा को 
अपनी समिधा से 
जलाकर खाक कर दे
अभ्र से अश्कों को कपोलों पर 
रिसने से 
रोक ले
पुकार विह्वलता की, परिणाम 
से बेखबर होकर 
हर रोज
उम्मीदों के अरण्य में भटकने
 को मजबूर हैं
सामीप्य का एहसास समझाया 
करता है कि.....
मत सिसक
क्षितिज कहां दूर है✍️

©Sudhir Sky @SS
कहां से लाऊं 
मैं 
कल्पतरू जो
अंतस की पीड़ा को 
अपनी समिधा से 
जलाकर खाक कर दे
अभ्र से अश्कों को कपोलों पर 
रिसने से 
रोक ले
पुकार विह्वलता की, परिणाम 
से बेखबर होकर 
हर रोज
उम्मीदों के अरण्य में भटकने
 को मजबूर हैं
सामीप्य का एहसास समझाया 
करता है कि.....
मत सिसक
क्षितिज कहां दूर है✍️

©Sudhir Sky @SS
sudhirsky4263

Sudhir Sky

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