2122 2122 212 लौ मुक़द्दस तू वही फिर से जला आँधियों को तू पता मेरा बता रातें सब अफ़सुर्दगी की हो गईं आज ग़ज़लें रात भर मुझको सुना जो बयाबाँ है ज़मीं बरसों से ही उस ज़मीं पे गुल मुहब्बत का खिला नींद हिज्रां में मुझे आती नहीं आज साक़ी रात भर मुझको पिला आखरी भी छोड़ दी मैंने रमक़ ज़िन्दगी से कुछ नहीं हासिल हुआ दूर लेजाओ "सफ़र" मुझको कहीं इस जहां में अब नहीं आता मज़ा मुक़द्दस- पवित्र अफ़सुर्दगी- बेचैनी बयाबाँ- जंगल, रेगिस्तान हिज्रां- वियोग साक़ी- bartender रमक़- आखरी सांस #yqbaba #yqdidi #shayari #सफ़र_ए_प्रेरित #love #philosophy