क्यू कशमकश में हो क्या भला उलझन में हैं हमे जुदा ही होना है ये तुम्हें भी हैं मालूम ये मेरे भी मन मे हैं बहारें कहां तक देंगी भला अपना हाथ खिज़ा का मौसम भी हर खिले गुलशन में हैं परिंदों की मिनकारो में कैसे आएगा ये सूरज मुकर्रर जगह हर शय की इस जीवन मे हैं कदम सँभाल कर रखना जमाने इस पाक मिट्टी में उसकी यादों के साथ यहाँ 'यश'भी। दफन में हैं।।। यशवीर सिंह'यश' मिनकार-चोंच