सहसा मैंने सूरज देखा आंखे चमक गयी मेरी मैं बोला क्यों आंख दिखाते कुछ भी विसात नहीं तेरी सहसा मैंने सूरज देखा लिए लुकाटी बैठे है जो सूरजु काका खेत में तन पर उनके वस्त्र नहीं है तप्ती हुई इस जेठ में चमड़ी इनकी काली पड फिर भी डिगा न पाया तू इनको न तेरी धूप लगे न लगे कभी भी इनको लू सहसा मैंने सूरज देखा पीछे है चाँदनिया बैठी मैले भूरे बाल में, एक लंगोटी तन पर डाले मिट्टी लगी है गाल में सहनशीलता उसकी देखो उसको हटा न पाया तू खुद ही तू जल जायेगा फिर भी पयेगा न उसको छू सहसा मैंने सूरज देखा तेरी अकड़ कहा चलती है बड़े बड़े से महलों में यहाँ सृजन का देव है बैठा व्यस्त है अपने टहलों में कोशिश तू कितना भी करले कितना आंख दिखा ले तू इनको न तेरी धूप लगे न लगे कभी भी इनको लू सहसा मैंने सूरज देखा आंखे चमक गयी मेरी मैं बोला क्या आंख दिखाते कुछ भी बिसात नहीं तेरी #सहसा मैंने सूरज देखा आंखे चमक गयी मेरी मैं बोला क्यों आंख दिखाते कुछ भी विसात नहीं तेरी सहसा मैंने सूरज देखा लिए लुकाटी बैठे है जो सूरजु काका खेत में